पत्रकार उत्पीड़न पर गरजा ‘चौथा स्तंभ’: कब तक चलेगा सत्ता का दमनचक्र?

- रिपोर्ट: चन्दन दुबे
मिर्जापुर: मीरजापुर में ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन (ग्रापए) के नेतृत्व में पत्रकारों ने आयुक्त कार्यालय पर जोरदार प्रदर्शन कर यह स्पष्ट संदेश दे दिया कि अब चुप्पी साधने का समय नहीं रहा।
अगर सच्चाई लिखना अपराध है, तो हर पत्रकार अपराधी है!
पत्रकार उत्पीड़न के खिलाफ सड़कों पर उतरे पत्रकारों ने चेतावनी दी कि अगर राजगढ़ थाना प्रभारी पर कार्रवाई नहीं हुई, तो आंदोलन प्रदेशव्यापी होगा। सवाल यह है कि क्या लोकतंत्र में सच बोलना अब अपराध बन गया है?
सत्ता की चमचागिरी नहीं करेंगे, तो मुकदमे झेलने को तैयार रहिए!
ग्रापए जिलाध्यक्ष अजय ओझा ने कहा कि निष्पक्ष पत्रकारिता करना अब किसी जंग से कम नहीं। अगर पत्रकार सरकार और प्रशासन की वाहवाही में लीन रहे, तो वह ‘माननीय’ बने रहेंगे, लेकिन यदि उन्होंने भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का भंडाफोड़ किया, तो उनके खिलाफ मुकदमे ठोंक दिए जाएंगे।
ताजा मामला राजगढ़ का है, जहां स्वास्थ्य विभाग की काली करतूतों को उजागर करने पर पत्रकारों को निशाना बनाया गया। प्रभारी चिकित्साधिकारी ने पुलिस में तहरीर दी, और बिना किसी जांच के पत्रकारों पर मुकदमा पंजीकृत कर दिया गया। आश्चर्य की बात यह है कि जब पत्रकार खुद शिकायत दर्ज कराने गए, तो उनकी एफआईआर तक नहीं लिखी गई। सवाल उठता है कि कानून सिर्फ ‘ऊपर से आदेश’ मिलने वालों के लिए ही है या पत्रकारों के लिए भी?
पुलिस को अपराधियों की नहीं, पत्रकारों की तलाश रहती है!
मीरजापुर में अपराध बेलगाम हैं, लेकिन पुलिस पत्रकारों की आवाज दबाने में जुटी है। राजगढ़ थाना प्रभारी पर आरोप है कि वे अपराधियों को संरक्षण दे रहे हैं, नशीले पदार्थों की तस्करी धड़ल्ले से हो रही है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ पत्रकारों को निशाना बनाया जा रहा है।
सरकारी अस्पताल या लूट का अड्डा?
राजगढ़ अस्पताल में डॉक्टरों की मनमानी किसी से छिपी नहीं। अस्पताल में दवाएं उपलब्ध होने के बावजूद मरीजों को बाहर की महंगी दवाएं खरीदने को मजबूर किया जाता है। डॉक्टर साहब 12 बजे से पहले अस्पताल आना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं, लेकिन जब कोई पत्रकार इस सच्चाई को उजागर करता है, तो यह “सरकारी कार्य में बाधा” बन जाता है!
कागजों में कार्रवाई, जमीन पर शून्य!”
मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) पर पहले भी भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। पत्रकारों ने जब इनके खिलाफ मोर्चा खोला, तो उन्हें धमकियां मिलने लगीं। आखिरकार, पत्रकारों को सीएमओ कार्यालय पर भी धरना प्रदर्शन करना पड़ा, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात!
अगर कलम से डरते हो, तो कुर्सी छोड़ दो!
पत्रकार उत्कर्ष मौर्या का थाने में अपमान किया गया, जिससे पत्रकारों में भारी आक्रोश है। देर रात तक राजगढ़ थाने में धरना देकर पत्रकारों ने यह साबित कर दिया कि वे अन्याय के आगे झुकने वाले नहीं हैं।
अब आंदोलन ही एकमात्र रास्ता!
ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन ने साफ कर दिया है कि अगर पत्रकार उत्पीड़न नहीं रुका, तो प्रदेशभर में आंदोलन होगा। यह लड़ाई सिर्फ पत्रकारों की नहीं, बल्कि हर उस नागरिक की है जो सच के पक्ष में खड़ा है। लोकतंत्र में अगर पत्रकारिता सुरक्षित नहीं, तो फिर जनता की आवाज भी दबा दी जाएगी। इस मौके पर ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष अजय ओझा, राजेश अग्रहरी ,अनिल दुबे, संजय दुबे,चंदन दुबे स्वतंत्र पत्रकार ,सुभाष मिश्रा, उमेश कुमार दुबे, अनिल कुमार मिश्रा ,सुरज दुबे, आशुतोष तिवारी, अंबुज दुबे , रामलाल साहनी, सुजीत दुबे, पुष्पेंद्र कुमार मिश्रा, नीतीश पाठक, दीपचंद यादव, विष्णुकांत पांडेय, राजू मौर्या, मुकेश पांडेय, सतीश सिंह,जितेंद्र कुमार बिंद, अनिल यादव, संदीप शर्मा, अभिषेक पांडेय, निर्मल दुबे, शिवबली राजपूत, पवन पांडेय, सुशील कुमार उपाध्याय ,राजू यादव ,संदीप कुमार शर्मा , बृजेश गौड़, आदि पत्रकार मौजूद रहे ।
सवाल वही है—क्या सच बोलने का अधिकार अब केवल सत्ता के पास रह गया है?