सरकार के दावों को झुठलाता सच, मिर्जापुर के आंगनबाड़ी केन्द्र की पोल खोलती घोटाला की हकीकत:–कागजों में मैडम हाजिर, जमीन पर गायब!

रिपोर्ट: चन्दन दुबे
मिर्जापुर: राजगढ़ की जनता को मिलने वाली सरकारी योजनाएँ जब फाइलों से निकलकर हकीकत में आती हैं, तब उनका असली ‘चरित्र’ दिखता है। आंगनबाड़ी केंद्रों को लेकर सरकार के बड़े-बड़े दावे हैं—हर बच्चे को पोषण, हर माँ को सुरक्षा, हर गरीब को सहारे की बात।तब झूठी होती है जब जमीनी हकीकत से सच्चाई सामने आती है तो खुलासा होता है की हकीकत क्या है और कागजों में क्या दिखता है ।राजगढ़ के कई आंगनबाड़ी केंद्रों की हकीकत सरकार के इन दावों की पोल खोलती है। सरकार कहती है कि गर्भवती महिलाओं और नौनिहालों को पोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए आंगनबाड़ी केंद्र बनाए गए हैं। लेकिन राजगढ़ ब्लॉक के आंगनबाड़ी केंद्रों पर हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है।
➡ आंगनबाड़ी केंद्रों पर ताले लटके हैं।➡️बच्चों को न शिक्षा मिल रही है, न पोषण। ➡आंगनबाड़ी संचालिका और सहायिका महीनों से नदारद हैं या अज्ञातवास , पर वेतन हर महीने जारी हो रहा। ➡ बच्चों को न शिक्षा मिल रही, न पोषण आहार। ➡ सीडीपीओ और सुपरवाइजर महीनों से ‘गायब’। पोषाहार और राशन का वितरण सिर्फ ‘रजिस्टर’ में हो रहा है, असल में लाभार्थियों को नहीं मिल रहा।➡️ शिकायत करने वाले ग्रामीणों को अधिकारी ‘घुमा-फिरा’ कर वापस भेज देते हैं।
जनता कह रही है— अगर हम शिकायत करें, तो अधिकारी मिलते नहीं। अगर हम चुप रहें, तो बच्चों का भविष्य बर्बाद होता है! आखिर करे तो करे क्या????
केंद्र पर सन्नाटा, लाभार्थियों को सिर्फ झुनझुना!
राजगढ़ ब्लॉक के बघौड़ा, खटखरिया, भांवां, देवपुरा पहाड़ी जैसे कई अन्य गांवों है आंगनबाड़ी केंद्र तो हैं, लेकिन वहाँ की गतिविधियाँ के हालात खस्ते हैं।
गाँव की महिलाओं का कहना है—कभी-कभी संचालिका आती है, लेकिन वह सिर्फ कागजों पर दस्तखत कर चली जाती है। बच्चों को न पढ़ाया जाता है, न ही पोषाहार दिया जाता है।
अब सवाल उठता है—अगर लाभार्थियों को कोई सुविधा नहीं मिल रही, तो फिर सरकार का पोषण मिशन आखिर किसके लिए चल रहा है। वही इस विषय पर इक स्थानीय नागरिकों ने बताया कि— सरकार कहती है कि पोषाहार मिल रहा है, लेकिन उनका कहना है महीनों से कुछ नहीं मिला!
वही एक अन्य लाभार्थी महिला सरिता देवी उम्र लगभग 37 ने गुस्से में कहा— सरकारी लिस्ट में हमको पोषाहार मिलता दिखता है, लेकिन हकीकत में न राशन मिला, न पोषण! जहां राजगढ़ की जनता पूछ रही है— ➡ अगर पोषाहार बंटा, तो गया कहाँ? ➡ अगर कार्यकर्ता तैनात हैं, तो दिखते क्यों नहीं? ➡ अगर शिकायत करनी हो, तो कहां करे अधिकारी दूज की चांद की तरह मिलते नहीं।
राशन वितरण या ‘राशन घोटाला
पिछले साल कोर्ट ने पोषाहार वितरण में गड़बड़ी देखकर उस पर रोक लगाई थी। बाद में ई-केवाईसी और फेस वेरीफिकेशन के बाद दोबारा शुरू करने का आदेश दिया गया। लेकिन जैसे ही छूट मिली, फिर वही ‘पुराना खेल’ आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के द्वारा शुरू हो गया। ➡ असल जरूरतमंदों को पोषाहार नहीं मिल रहा। ➡परिचितों को बिना रोक-टोक पूरा लाभ । ➡ फेस वेरीफिकेशन का बहाना बनाकर हकदारों को वंचित किया गया। !!जनता भूखी सोए, पर अफसरों की जेब भरी रहे!—यही इस सिस्टम का असली ‘स्लोगन’ बन चुका है।
आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चे हैं, पर शिक्षा नहीं!
सरकार की योजना के अनुसार,आंगनबाड़ी में बच्चों को शुरूआती शिक्षा दी जानी थी। लेकिन जब संचालिका और सहायिका ही गायब हों, तो शिक्षा कैसे मिलेगी आरोप है कि बच्चों के नाम पर हाजिरी लगती है, पर पढ़ाई नहीं होती। शिक्षण सामग्री ‘खर्च’ दिखाई जाती है, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ नहीं मिलता। बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। जहां यह एक कहावत है पूरे मसाले को हल कर देगा➡️ जब ‘माली’ ही बगीचे को उजाड़ने पर तुल जाए, तो फूल कैसे खिलेंगे?
शिकायत करने गए, तो अधिकारी लापता!
जब स्थानीय नागरिकों ने सीडीपीओ कार्यालय जाकर शिकायत करनी चाही, तो वहां भी ‘सन्नाटा’ मिला। सीडीपीओ महीनों से कार्यालय नहीं आईं। ऐसी जानकारी प्राप्त हुआ वही कार्यालय सुपरवाइजर का कोई अता-पता नहीं। एक ग्रामीण ने गुस्से में कहा— अधिकारियों की तनख्वाह आती है, लेकिन वो खुद नहीं आते! जहां यह स्पष्ट होता है कि सरकारी दफ्तर भी ‘घोस्ट (भूतिया बंगला बन गया है) ऑफिस’ बन गए हैं।
सरकार का पैसा, जनता का हक – लेकिन जिम्मेदार गायब
सवाल यह कि सरकार योजनाएँ बनाती है। अधिकारी उन्हें लागू करने का दावा करते हैं। लेकिन हकीकत में जनता को सिर्फ ‘झुनझुना’ पकड़ा दिया जाता है। कहावत है— ऊपर से आदेश आते हैं, नीचे से फाइलें दब जाती हैं, और जनता फिर ठगी रह जाती है! जहां अब समय आ गया है कि— अनुपस्थित अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई हो। आंगनबाड़ी केंद्रों की स्वतंत्र जांच कराई जाए।पोषाहार वितरण प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए।जनता को सीधा शिकायत दर्ज कराने का डिजिटल प्लेटफॉर्म मिले।