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Non-जीएम मक्के के सुरक्षित भविष्य को छोड़कर जीएम मक्के के मकडजाल में उलझती मक्का कृषि

भारत की परंपरागत कृषि सदियों से जैव विविधता और सतत खेती के मूल्यों पर आधारित रही है। देश के प्रमुख खाद्यान्नों में मक्का  का विशेष स्थान है। आज मक्के की आसमान छूती कीमतें, जैविक ईंधन के लिए मक्के की उत्पादन क्षमता को और बढ़ाने की भारत सरकार की निरंतर कोशिश ने मक्के की फसल को आज अत्यंत आकर्षक फसल बना दिया है| भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने मक्के की जलवायु-लचीली फसलों के विकास पर विशेष ध्यान दे रही है। अगस्त 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसी 109 नई किस्मों को राष्ट्र को समर्पित किया, जिनमें मक्का भी शामिल है। पर मक्के की इस अचानक बढती मांग के बीच, हमारे कृषि वैज्ञानिकों और नीति निर्धारकों के बीच एक नयी बहस शुरू हो गयी है| कुछ लोगों का मानना है कि  मक्के की हमारी Non-जीएम किस्में हमारे यहाँ मक्के की आपूर्ति को पूरा नहीं कर सकती, अतः हमें विदेशी जीएम की तरफ रुख करना ही पड़ेगा और वही हमें मक्के की कमी की समस्या से निजात दिला सकता है | साथ ही जीएम मक्का का कीटों से सुरक्षा और उत्पादन बढ़ाने के नाम पर भ्रामक प्रचार किया जा रहा है, लेकिन इसके दीर्घकालिक खतरे और दुष्प्रभावों को लेकर गंभीर चिंताएं हैं।

कई रिसर्च पेपर्स में प्रकाशित स्टडीज कहती है कि जीएम मक्के की फसल में लाभकारी कीटों का विनाश होता है और पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ता है, मोनोक्रॉपिंग (एक ही फसल की बार-बार खेती) के कारण मिट्टी की उर्वरता घटती है और जैव विविधता समाप्त होती है। जीएम बीज पेटेंट कानूनों से बंधे होते हैं, जिससे किसान हर वर्ष नया बीज खरीदने को मजबूर होते हैं– ठीक वैसे ही जैसे बीटी कपास के मामले में देखा गया, जो बाद में किसान आत्महत्याओं का कारण बना। भारत ने जीएम फसलों को लेकर अब तक कड़ा रुख अपनाया है। सितंबर 2024 में सरकार ने जीएम फसलों पर एक व्यापक नीति बनाने की शुरुआत की, लेकिन अब तक कोई स्पष्ट नीति सामने नहीं आई है। जनवरी 2025 में पर्यावरण मंत्रालय ने GEAC की प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाने हेतु संशोधन प्रस्तावित किए, लेकिन पर्यावरणविदों ने इन्हें अधूरे और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के विपरीत बताया।

हाल फिलहाल में अनधिकृत जीएम मक्का की खेती सामने आई जिसने सबकी चिंता और बढ़ा दी है। जब नवंबर 2024 में NIFTEM-T ने कई राज्यों में प्रोसेस्ड और कच्चे मक्का उत्पादों में अवैध जीएम मक्का की पहचान की। मार्च 2025 में तेलंगाना के मुलुगु जिले में जीएम बीज के उपयोग की शिकायत पर जांच हुई, जहां किसानों को कम उपज और भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। भारत में मक्का की मांग 2025 तक 40 मिलियन टन तक पहुंचने की संभावना है, जबकि उत्पादन लगभग 35 मिलियन टन रहने का अनुमान है। यह अंतर पोषण, चारा और एथनॉल उद्योग की बढ़ती मांग को दर्शाता है। हालांकि कुछ मुर्गीपालक GM मक्का आयात की मांग कर रहे हैं, फिर भी भारत में इसके वाणिज्यिक उपयोग की अनुमति नहीं है। दूसरी ओर, यूरोपीय संघ जैसे देश GM फसलों पर प्रतिबंध लगाकर गैर-जीएम और जैविक उत्पादों की मांग बढ़ा रहे हैं। भारत के पास गैर-जीएम मक्का के वैश्विक निर्यात में अग्रणी बनने का सुनहरा अवसर है।

इन सब चर्चाओं के बीच एक बात तो बहुत साफ़ है  कि हमारा देश शोर्ट टर्म भ्रामक फायदे की लिए हमारे किसानों की मिट्टी, कृषक भाइयों की  संप्रभुता और हमारे पर्यावरण से समझौता नहीं कर सकता। अतः भारत को सतत कृषि की दिशा में आगे बढ़ने के लिए इन उपायों पर ज़ोर देना चाहिए । मसलन गैर-जीएम मक्का की उच्च उपज, रोग-प्रतिरोधी व जलवायु सहनशील किस्मों का विकास कर उसे किसानों तक पहुँचाना चाहिए। जैविक व प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने हेतु सब्सिडी योजनाएं शुरू करना जिसकी शुरुआत जनवरी 2025 में शुरू की गई ₹500 करोड़ की योजना से हो चुकी है। किसानों के बीच जागरूकता फैलाना कि पारंपरिक किस्में दीर्घकाल में अधिक लाभकारी हैं और वो किसी के बहकावे में ना आये। अनधिकृत जीएम खेती पर भारत सरकार की सख्त निगरानी और नियंत्रण होना चाहिए और अगर कोई ऐसी अवैध खेप पकडाती है तो उनके मालों को सख्त से सख्त सजा देने का प्रावधान हो।

भारत आज एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। GM और गैर-GM मक्का के बीच चयन केवल तकनीकी नहीं बल्कि सांस्कृतिक, आर्थिक और पारिस्थितिकीय निर्णय है। गैर-जीएम मक्का न केवल जैव विविधता का रक्षक है बल्कि भारत की कृषि परंपरा, आत्मनिर्भरता और किसानों की गरिमा का प्रतीक भी है। यह समय है जब हम अपने अन्नदाता के हाथों में परंपरा और नवाचार का संतुलित बीज सौंपें—जो धरती से जुड़े, पर्यावरण के अनुकूल हो और आने वाली पीढ़ियों को पोषण व सुरक्षा प्रदान करें।

डॉ. ममता मयी प्रियदर्शिनी
पर्यावरणविद्, समाजसेवी, और ‘प्रशुभगिरी’ (किसानों की आवाज़ का ट्रस्ट) की ट्रस्टी

 

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