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क्या डायबिटीज़ की परिभाषा अब बदलने वाली है? – लखनऊ में प्रेस वार्ता में डॉ. वरुण का बड़ा बयान

  • रिपोर्ट: अनुराग सिंह बिष्ट

लखनऊ: एप्रोप्रियेट डाइट थेरेपी सेंटर द्वारा आयोजित एक विशेष प्रेस वार्ता में डायबिटीज़ को लेकर लंबे समय से चली आ रही चिकित्सा मान्यताओं को चुनौती देने वाला बड़ा खुलासा सामने आया। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता डॉ. वरुण ने कहा कि “डायबिटीज़ कोई लाइलाज बीमारी नहीं, बल्कि एक शुगर यूटिलाइजेशन डिसऑर्डर है, जिसका समाधान रसोईघर से ही संभव है।”

यह संवाद प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. एस. कुमार के शोध पर आधारित था, जिन्होंने ‘डायबिटीज़ मुक्त भारत अभियान’ की शुरुआत की है। डॉ. वरुण ने कहा कि सिर्फ दवाओं और इंसुलिन पर निर्भरता से मरीजों को राहत नहीं मिलती, बल्कि सही जांच और खानपान के माध्यम से ही इस स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है।

डायबिटीज़ का इतिहास और वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
डॉ. वरुण ने बताया कि:

  • 1921 में फ्रेडरिक बैंटिंग और चार्ल्स बेस्ट ने इंसुलिन की खोज की थी।
  • 1936 में डायबिटीज़ को टाइप-1 और टाइप-2 में बांटा गया।
  • 1970 में इंसुलिन रेसिस्टेंस के पीछे सेलुलर रिसेप्टर डिफेक्ट को प्रमुख कारण माना गया।

डॉ. एस. कुमार के शोध के अनुसार,
👉 90% मरीजों में इंसुलिन की मात्रा सामान्य होती है, फिर भी उन्हें डायबिटीज़ का गलत डायग्नोसिस दे दिया जाता है।
👉 मुख्य समस्या शरीर में शुगर का उपयोग न हो पाना है, न कि इंसुलिन का अभाव।

रसोई से जुड़ी असली वजह:
डॉ. कुमार का दावा है कि बीजों से बने रिफाइंड तेल (जैसे सोयाबीन, सूरजमुखी आदि) जब गर्म किए जाते हैं, तो वे शरीर में ट्रांस फैट्स और खतरनाक रसायन पैदा करते हैं जो:

  • इंसुलिन रिसेप्टर्स को नष्ट करते हैं
  • शुगर के कोशिकाओं में प्रवेश को रोकते हैं
  • पैंक्रियाज़ के बीटा सेल्स को क्षतिग्रस्त करते हैं

डायग्नोसिस के लिए नई जांचें:
डॉ. कुमार ने सुझाव दिया कि केवल फास्टिंग शुगर, HbA1c आदि से डायबिटीज़ का सही मूल्यांकन नहीं होता। इसके लिए निम्न 8 जांचों की जरूरत है:

  • फास्टिंग सीरम इंसुलिन
  • सी-पेप्टाइड
  • होमा-आईआर
  • बीटा सेल फंक्शन
  • इंसुलिन सेंसिटिविटी सहित अन्य बायोमार्कर्स

सामाजिक समर्थन और संदेश:
इस मौके पर इंडियन एक्स-सर्विसेज लीग, लखनऊ के अध्यक्ष सुबेदार मेजर (से.नि.) ऋषि दीक्षित और आर.बी. सिंह ने डायबिटीज़ मुक्त भारत अभियान को समाज के लिए जरूरी बताया।
“देश की रक्षा करने वाले सैनिकों के स्वास्थ्य की रक्षा करना अब हमारी जिम्मेदारी है,” – दीक्षित जी ने कहा।

निष्कर्ष:
डॉ. वरुण ने कहा,
“अगर रोग रसोई से शुरू होता है, तो समाधान भी रसोई से ही निकलेगा। अब वक्त आ गया है कि डायबिटीज़ को सिर्फ दवाओं से नहीं, सही खानपान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हराया जाए।”

इस कार्यक्रम में सेंटर इंचार्ज विनोद अवस्थी, डाइटीशियन ममता पांडेय व अल्का श्रीवास्तव, और आईटी विशेषज्ञ राज कमल त्रिपाठी भी उपस्थित रहे।

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