अडानी के पावर प्लांट पर सवाल उठे: मिर्ज़ापुर के जंगल में पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी और फर्जी जनसुनवाई के आरोप

रिपोर्ट: चन्दन दुबे
जनहित में दूरगामी सोच नहीं सोच रही सरकार, जंगली जीवों का क्या होगा —खेती की जमीनों को ही क्यों चुना जा रहा!
क्या ये विकास है या विध्वंस?—परियोजना की प्रस्तावना पर क्यों किया गया दिखावटी बहस
मिर्ज़ापुर (उत्तर प्रदेश): मिर्ज़ापुर में गौतम अडानी के पावर प्लांट का मामला गरमा गया है। यहां 1600 मेगावाट की कोयला आधारित पावर प्लांट लगाने की योजना पर स्थानीय लोग कड़ा विरोध कर रहे हैं। आरोप है कि जनसुनवाई का आयोजन सही तरीके से नहीं किया गया और इसमें पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन हुआ है।
क्या था जनसुनवाई का सच?
11 अप्रैल 2025 को मिर्ज़ापुर जिले के ददरी खुर्द गांव के पास मड़िहान में जनसुनवाई रखी गई थी, जिसमें लोगों से पर्यावरणीय मंजूरी ली जानी थी। लेकिन इसमें वो लोग बुलाए गए जो ना तो इस इलाके के थे, और ना ही इस परियोजना से सीधे जुड़े थे। आरोप है कि बाहरी लोगों को लाकर जनसुनवाई में हंगामा किया गया, जबकि असल प्रभावित लोग पूरी तरह से बाहर थे।
गांववालों का कहना है कि यह एक फर्जी और मनगढ़ंत प्रक्रिया थी, जहां स्थानीय आवाज़ों को दबाने के लिए यह सब किया गया। “पब्लिक नोटिस नहीं, कोई सूचना नहीं, फिर किसके लिए जनसुनवाई हुई?” ये सवाल अब ग्रामीणों के मन में हैं।
जनसुनवाई के बाद क्या हुआ?
इस बैठक में जो लोग मौजूद थे, उनके कहे मुताबिक ये बैठक विकास के नाम पर सिर्फ फालतू की बातें की गईं। विधायक रमाशंकर सिंह पटेल ने कहा कि इस पावर प्लांट से इलाके में विकास होगा, रोजगार मिलेगा। लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया कि इससे जंगलों की तबाही, जल संकट और जंगली जीवों के लिए खतरे का क्या होगा?
मड़िहान और ददरी खुर्द के लोग कहते हैं, “अरे, ये सब सिर्फ दिखावा है। हमारी ज़िंदगी और जंगल की तबाही की कोई बात नहीं करता।”
क्या यह नियमों की उड़ती धज्जियां हैं?
पर्यावरणीय नियमों के मुताबिक, जब भी कोई बड़ा पावर प्रोजेक्ट शुरू होता है, तो उसके असर का अध्ययन और रिपोर्ट सबको सार्वजनिक करना जरूरी होता है। लेकिन यहां न तो EIA रिपोर्ट (पर्यावरणीय प्रभाव आकलन) को सार्वजनिक किया गया और न ही पंचायतों में इसकी जानकारी दी गई।
ग्रामीण रामाज्ञा सिंह कहते हैं, “हमने शिकायत की थी, लेकिन न हमें सुनने दिया गया, न किसी ने जवाब दिया।”
कानूनी प्रक्रिया पर भी सवाल
मिर्ज़ापुर के इस मामले में अब राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) में भी मामला लंबित है, और 23 मई 2025 को अगली सुनवाई है। इसके बावजूद, 11 अप्रैल को जनसुनवाई कैसे की जा सकती है? यह सवाल भी उठ रहा है, क्योंकि ‘जल्दबाजी’ के इस कदम से सिर्फ असमंजस बढ़ा है।
“हमें तो लगता है कि यह सब एक दिखावा है। न तो किसी ने दस्तावेज़ दिखाए, न कोई सुनवाई की सही प्रक्रिया अपनाई गई,” कहते हैं गांववाले।
मड़िहान के जंगल और किसानी पर खतरा— एक साथ उजड़ती कई ज़िंदगी
मड़िहान के जंगल कटेंगे तो सिर्फ हरियाली नहीं जाएगी, किसानी और जंगली जानवरों का भी जीना मुहाल हो जाएगा।
कृषि पर मार:जंगल में छुपे छोटे-बड़े जलस्रोत खेतों की सिंचाई का सहारा हैं। पेड़ कटेंगे, तो पानी सूखेगा। धान-गेहूं से लेकर सब्जी-पत्ती तक की खेती चौपट हो जाएगी। पानी की किल्लत, मिट्टी की ताकत कम, और ऊपर से खाद-बीज महंगे—किसान बर्बाद हो जाएगा। धीरे-धीरे पलायन, बेरोज़गारी, और भुखमरी का मंजर दिखने लगेगा।
वन्यजीव संकट: मड़िहान के जंगल में पहले से कई संरक्षित जंगली जीव रहते हैं, और इस जंगल को भालू संरक्षण रिजर्व बनाने का प्रस्ताव भी उत्तर प्रदेश सरकार के पास 2019 से पड़ा है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। अगर इस परियोजना के चलते जंगल कटे तो सिर्फ जंगली जीवों को ही नुकसान नहीं होगा, बल्कि जल संकट और खेती भी प्रभावित होगी। यह जंगल भालू, तेंदुआ जैसे दुर्लभ जानवरों का घर है। पेड़ कटे, तो उनका बसेरा उजड़ जाएगा। भूखे जानवर गांव-खेत की ओर आएंगे, फसलें चरेंगे, और मानव-वन्यजीव टकराव बढ़ेगा। इससे जैव विविधता और जंगल की आत्मा दोनों को नुक़सान होगा। अगर यही हाल रहा, तो कल को ना किसान बचेगा, ना जंगल, ना जानवर। फिर ना खेती होगी, ना शांति। एक साथ कई संकट गले पड़ जाएंगे।
स्थानीय लोगों की पारदर्शी मांग
गांववालों की यह मांग है कि जनसुनवाई को रद्द किया जाए, और EIA रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए। उन्हें लगता है कि इस पूरे मामले की एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।
“अगर सरकार और कंपनियां सही हैं तो क्यों नहीं यह सब पारदर्शी तरीके से किया जा रहा? हम चाहते हैं कि हमारी आवाज़ सुनी जाए और हमसे बिना किसी दबाव के राय ली जाए,” रामाज्ञा सिंह कहते हैं। बंजर भूमि स्थान पर यह प्लांट क्यों नहीं लगाया जा रहा। तमाम विकल्प है पर कुछ लोगों के निजी स्वार्थ के चक्कर में राजनीति रोटियां सेकि जा रही हैं जो केवल दिखावटी विकास की बातें हैं। जिसका परिणाम आगे चल कर विध्वंस ही दिखेगा अगर दूरगामी सोच नहीं रखी गई तो।