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क्या खूनी खेल होने का इंतजार है या मोटी रकम पहुंचने के बाद सुनेगी प्रशासन—सार्वजनिक रास्ते पर दबंगों का कब्जा

सरकारी सिस्टम की कान में रुई या मिलीभगत की सुई? – जब दबंगों के आगे कानून हुआ लाचार!

  • रिपोर्ट: चंदन दुबे 

मिर्जापुर। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में कानून-व्यवस्था की सख्ती के दावे बार-बार किए जाते हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत एक अलग ही तस्वीर पेश कर रही है। मिर्जापुर के नगर पालिका परिषद के कटरा कोतवाली वार्ड नंबर 9, शिवाला महंत के नटवा मोहल्ले में दबंगों की दबंगई दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। सार्वजनिक भूमि पर खुलेआम कब्जा किया जा रहा है, और प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है। सरकारी रास्तों को जबरन घेरकर आम जनता की आवाजाही को बाधित किया जा रहा है, मानो कानून का कोई डर ही न हो।मोहल्ले में दबंगई का ऐसा तांडव चल रहा है कि आम जनता हतप्रभ है और प्रशासन कानों में रुई डाले बैठा है। व कहावत है न कि।अंधेर नगरी, चौपट राजा यहाँ भी हाल कुछ वैसा ही दिख रहा है, जहाँ कानून किताबों में कैद है और दबंगों का राज सार्वजनिक स्थलों पर।

कब्जे की कहानी, प्रशासन की नादानी!
आरोप है कि विजय यादव और उनके परिजन पुत्रगण सुध्दू यादव, जो खुद को स्थानीय सत्ता का बेताज बादशाह समझते हैं, ने न केवल सार्वजनिक रास्ते बल्कि तालाब की भूमि पर भी अवैध कब्जा कर रखा है। जिसका लाठी, उसकी भैंस—इस कहावत को चरितार्थ करते हुए इन दबंगों ने खुलेआम रास्तों पर पिलर गाड़ दिए हैं, कंटीले तार लगा दिए हैं, और मानो कानून को अपनी जागीर बना लिया हो। बताते चले कि स्थानीय लोग चीख-चीख कर कह रहे हैं कि विजय यादव और उनके भाइयों ने सार्वजनिक रास्तों और तालाब की जमीन पर अवैध कब्जा कर लिया है। वार्ड के सभासद रतन कुमार बिंद ने बताया कि ये दबंग इलाके में दहशत फैला चुके हैं, खुलेआम धमकियां देते हैं, और सरकारी दस्तावेजों में हेराफेरी तक कर रहे हैं। लोगों की जमीनें कागजों से गायब कर दी जाती हैं, लेकिन प्रशासन कान में तेल डालकर बैठा है।
इतना ही नहीं इन दबंगों से जब कोई बात करता है तो यह गुंडई पर आमद हो जाते हैं बता दे की, इन लोगों की वजह से आम लोगों का आवाजाही ठप हो गई है। यह रास्ता कई अहम जगहों से जुड़ता है, लाल दिग्गी, नटवा तिराहा, इमामबाड़ा और सबरी तिराहे को जोड़ता है, जिससे हजारों लोगों की आवाजाही प्रभावित हो रही है।
वही नगर पालिका सभासद रतन कुमार बिंद की मानें तो विजय यादव का पूरा परिवार ही इस खेल में माहिर है। तहसील में बैठे इनका भाई मान सिंह की मिलीभगत से ज़मीनों के कागज़ात में ऐसी हेराफेरी की जाती है कि आम आदमी की जमीन से नाम ही गायब हो जाती है। प्रशासन भी मानो देखो और चुप रहो के सिद्धांत पर चल रहा है। वही यह शिकायतें SP से लेकर DM व पुलिस चौकी प्रभारी से लेकर तहसीलदार तक—सभी को शिकायतें सौंपी गईं, मगर नतीजा वही ‘ढाक के तीन पात’। अधिकारी सिर्फ फाइलों में नोटिंग लगाकर इतिश्री कर लेते हैं, मगर मौके पर जाकर कोई ठोस कार्रवाई नही करते।

तालाब और रास्तों बना दबंगों की जागीर!
नगर पालिका की सार्वजनिक तालाब की जमीन पर भी इनका अवैध कब्जा है। प्रशासन की हालत ऐसी है मानो उसने “न घर के, न घाट के” वाली स्थिति अपना ली हो। जब सरकारी ज़मीन भी सुरक्षित नहीं, तो आम जनता की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है।
वही अहम सवाल यह हैकि… —1. क्या प्रशासन किसी बड़ी हिंसा या खूनी खेल का इंतजार कर रहा है?,2. क्या सरकारी अफसरों की आँखों पर नोटों की पट्टी बंधी हुई है? ,3. जब शिकायतों का पुलिंदा पूरा हो चुका, तो कार्रवाई क्यों नहीं? ,4. कब तक आम जनता को दबंगों के रहमोकरम पर जीने पड़ेगा।

* बड़ा हादसा होने पर जिम्मेदारी किसकी?*
सरकार कहती है “सबका साथ, सबका विकास” मगर यहाँ तो “सबका विनाश, दबंगों का विकास” चल रहा है! अगर कानून का राज सच में कायम है, तो इस पर त्वरित और सख्त कार्रवाई होनी चाहिए थी। पर अब लगता है कि जनता को खुद खड़ा होकर अपनी जमीन, अपने रास्ते और अपने अधिकारों की लड़ाई लड़नी पड़ेगी। जिसका नतीजा कल को किसी बड़े हादसे को जन्म देगा। क्योंकि जिस तरीके से सभासद ने बताया कि उसने अधिकारियों को सूचना दी और उसके बाद कोई कार्रवाई नहीं हुई तो इससे स्पष्ट होता है कि इस बड़े हादसे की जिम्मेदार कौन होंगे। अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या मिर्जापुर का प्रशासन इस मसले को गंभीरता से लेगा, या फिर एक दिन अखबार की सुर्खियों में किसी खून-खराबे की खबर ही इन्हें जगाएगी?

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