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योगी-मोदी सरकार में रिटायर्ड सफाई कर्मचारी रामप्यारी डोमिन पेंशन के इंतजार में भीख मांगने को मजबूर

फाइलों में दफन पेंशन, जिंदगी की आखिरी सांसें गिनती रामप्यारी, 5 साल से पेंशन के लिए भटक रही रामप्यारी, बाबुओं के टेबल पर धूल खा रही फाइलें

  • रिपोर्ट: चंदन दुबे

गाजीपुर।

सबका साथ, सबका विकास के नारे का क्या हश्र हो सकता है, यह अगर देखना हो तो गाजीपुर की रामप्यारी डोमिन की जिंदगी पर एक नजर डालिए। 30 सितंबर 2015 को सेवानिवृत्त हुईं नगर पालिका परिषद गाजीपुर की सफाई कर्मचारी रामप्यारी डोमिन की पेंशन आज तक शुरू नहीं हुई। अब हाल यह है कि दमा और टीबी से ग्रसित 65 वर्षीय वृद्धा दर-दर की ठोकरें खा रही हैं।

जो महिला जिंदगी भर गंदगी साफ कर शहर को स्वच्छ रखती रही, वही आज अपनी पेंशन के लिए बाबुओं और अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर है। लेकिन सरकारी व्यवस्था इतनी संवेदनहीन हो चुकी है कि कोई सुनवाई करने को तैयार नहीं।

सरकारी लापरवाही की दर्दनाक दास्तान—

रामप्यारी डोमिन के पति सरबाज डोम की मृतक आश्रित पेंशन का मामला भी 2000 से लटका पड़ा है। पति की जगह नौकरी मिली, लेकिन पेंशन का भुगतान आज तक नहीं हुआ। ऐसे में जब खुद रामप्यारी रिटायर हुईं, तो सोचा था कि पेंशन से अंतिम दिनों का गुजारा कर सकेंगी, मगर सरकारी लापरवाही के चलते उन्हें भीख मांगने तक की नौबत आ गई।

2020 में नगर पालिका परिषद गाजीपुर ने उन्हें बिना कोई सूचना दिए नौकरी से हटा दिया। सरकारी सिस्टम की यह क्रूरता देखिए कि एक महिला कर्मचारी को उसकी सेवा समाप्ति की सूचना तक नहीं दी गई। आज रामप्यारी अपने पेंशन के कागजों के साथ दफ्तर-दफ्तर भटक रही हैं, मगर कोई भी अधिकारी सुनवाई करने को तैयार नहीं।

“बाबू बोले – फाइल खो गई”—

रामप्यारी डोमिन की पेंशन फाइल 2024 में वाराणसी कमिश्नरी भेजी गई, मगर वहां से भी कोई जवाब नहीं आया। नगर पालिका के बाबुओं से जब पूछा गया कि पेंशन क्यों नहीं आई, तो जवाब मिला फाइल अभी प्रोसेस में है, कुछ कागज पूरे नहीं हैं। सवाल उठता है कि एक सफाई कर्मचारी की पूरी जिंदगी की कमाई और अधिकार बाबुओं की टेबल पर धूल क्यों फांक रहे हैं।

पीड़िता भीख मांगने को मजबूर हूं, मेरी सुनवाई कौन करेगा?—

रामप्यारी डोमिन आज गाजीपुर की सड़कों पर मदद मांग रही हैं। उनका कहना है, मेरे पति की पेंशन नहीं मिली, मेरी पेंशन भी लटका दी गई। अब मैं कहां जाऊं? क्या सफाईकर्मियों की जिंदगी की कोई कीमत नहीं? जब तक काम किया, सबने काम लिया, अब मरने के लिए छोड़ दिया??

क्या यही है ‘न्याय सबके लिए’ का नारा

जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वच्छ भारत मिशन की सफलता की बात करते हैं, तब सवाल उठता है कि जो लोग जिंदगी भर सफाई करते रहे, उनकी खुद की जिंदगी इतनी गंदी क्यों हो गई!

अब कौन करेगा न्याय?—रामप्यारी डोमिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, नगर विकास मंत्री, समाज कल्याण मंत्री और सफाई आयोग को पत्र लिखा है, मगर अब तक कोई जवाब नहीं आया।

अब सवाल यह है कि क्या सरकार रामप्यारी डोमिन की गुहार सुनेगी?या फिर वह भी हजारों लावारिस गरीब कर्मचारियों की तरह गुमनाम मौत मर जाएगी?

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