उत्तर प्रदेशताज़ा खबरेंभारतलखनऊ

डीएम साहिबा देखिए क्या हो रहा है! सरकारी स्कूल के बच्चों की सरकारी किताबें बीआरसी कार्यालय से गायब, निजी संस्थान की शोभा बनीं – शिक्षा विभाग में बंदरबांट या बंदरबांट में शिक्षा विभाग?

नारायणपुर ब्लाक के बच्चों को दी जाने वाली किताबें पहुंची निजी संस्थान में

  • रिपोर्ट: चन्दन दुबे

मीरजापुर: जिले में नए शिक्षा सत्र के शुरुआत के साथ ही सरकारी किताबों में बंदरबांट शुरू हो गया है। और इसका उदाहरण जिले के नारायणपुर ब्लाक से सामने आया है, जो पिछले कुछ महीनों से भ्रष्टाचार और गड़बड़ी की वजह से सुर्खियों में बना है। बच्चों के शिक्षा लिए आए सरकारी किताबें, जो प्राथमिक विद्यालयों के बच्चों को वितरित की जानी थीं, बीआरसी कार्यालय पर न रखकर निजी संस्थान में रखवा दी गई हैं, ताकि इन किताबों में गोलमाल किया जा सके और उन्हें बेचा जा सके। जब की इस मामले में पूर्व के रिकॉर्ड का अवलोकन में ऐसा नहीं था।जबकि सूत्रों की माने तो और वहां के कर्मचारियों की काना फूसी की चर्चा में यह कहा जा रहा है कि यह नई परिपाटी का अध्याय बीमा वाले गुरु जी के हित लाभ के देखते हुए किया जा रहा है।

देखिए क्या है पूरा मामला?
जनसूत्रों की मानो तो सरकार के द्वारा संचालित संवैधानिक नियमों के तहत जो कार्य बच्चों के हित में होना था वह निजी स्वार्थ में शिक्षा माफियाओं का व्यवसाय बनता जा रहा है। विश्वसनीय सूत्रों के माध्यम से बताते चलें कि जिले में नारायणपुर ब्लाक के सरकारी स्कूल के किताबों का गोरखधंधा शिक्षा विभाग के अधिकारियों के साथ-साथ कुछ ऐसे शिक्षकों के जरिए चल रहा है, जो शिक्षण कार्य से ज्यादा बीमा पॉलिसी के कामों में रुचि रखते हैं। बताया जा रहा है कि एक बीमा कम्पनी से ताल्लुक़ात रखने वाले गुरुजी इस पूरे मामले में शामिल हैं, जिनकी भूमिका इस व्यापारिक घोटाले में महत्वपूर्ण देखा जा रहा है। बताते चले की

किताबों का निजी संस्थान में पहुंचना अब पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया है। वही लोग इस मामले को लेकर तरह तरह के सवाल उठा रहे हैं, कि आखिरकार सरकारी किताबों को निजी संस्थान में रखने का आदेश किस अधिकारी ने दिया? यह कैसी मनमानी है, या फिर इसके पीछे कुछ बड़े हाथ हैं? शिक्षा विभाग के अधिकारियों पर लगातार यह आरोप लग रहे हैं कि वे दलालों के चंगुल से बाहर नहीं निकल रहे हैं, और वही उनके विभाग में उच्च पदस्थ कुछ लोगो के संरक्षण इस भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है।

सवाल उठता है:-
किस अधिकारी ने इस घोटाले को अंजाम देने के लिए आदेश दिया?
नारायणपुर ब्लाक में सरकारी किताबों का यह व्यापार कैसे और क्यों चल रहा है?
आखिर शिक्षा विभाग के अधिकारियों को क्या हो गया है, जो किसी भी सख्त कार्रवाई से बच रहे हैं?

क्यों बढ़ रही है भ्रष्टाचार की हवस नारायणपुर ब्लॉक बीआरसी कार्यालय में?
इस पूरे जन चर्चा के मामले में यह भी साफ नजर आता है कि नारायणपुर विकासखंड का प्राथमिक शिक्षा विभाग पूरी तरह से दलालों और भ्रष्टाचारियों के कब्जे में है। यह एक तरह से विभागीय अधिकारियों की नाकामी का प्रतीक बन चुका है, जो न तो ठोस कार्रवाई करते हैं और न ही जिले के स्कूल में हो रहे लापरवाहियों और भ्रष्टाचार के कई गड़बड़ियों की सही ढंग से न जांच कराते हैं। यही कारण है कि लगातार ऐसी कई शिकायतें वहां के स्कूल से सामने आ रही हैं, लेकिन किसी भी बड़े अधिकारी ने अब तक इन पर ध्यान नहीं दिया है।

क्या अधिकारियों का संरक्षण मिल रहा है?
चुनार विधानसभा के नारायणपुर ब्लॉक स्कूल के स्थानीय प्रभारी प्रधानाध्यापक, जो पहले भी अपनी पत्नी के खाते में पच्चास हजार सरकारी धन भेजने के कारण सुर्खियों में रहे थे और आधार कार्ड पर रुपया बनाने का भी मसाला था, जहां भी यह मामला शांत भी नहीं हुआ था कि किताबों वाला मामला सामने आया जहां इससे अंदाजा लगाया जा सकता है की उनका रौब अब तक कैसे कायम है। एक सत्ताधारी दल के विधायक से खास संबंध होने की बात करते हुए उन्होंने अपने भ्रष्टाचार को बड़े धत्ते से अंजाम दिया है। ऐसा लगता है कि अधिकारियों और सफेदपोश लोगों की संरक्षण से उनकी हिम्मत इतनी बढ़ गई है कि वह इस घोटाले को बिना किसी डर के अंजाम दे रहे हैं।

क्या होनी चाहिए कार्रवाई?
अब सवाल यह है कि शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन इस गंभीर घोटाले पर कब तक चुप रहेगा? डीएम साहिबा को इस मामले में तुरंत दखल देना चाहिए, ताकि इन किताबों की बिजनेस मसलो पर समय रहते रोक लगाई जा सके। इसके साथ ही सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि भ्रष्टाचारियों और दलालों को कड़ा संदेश मिले। यह सब कुछ जवाबदेही और प्रारंभिक जांच से ही संभव हो सकता है, ताकि नारायणपुर ब्लाक की शिक्षा व्यवस्था की साख को बचाया जा सके और बच्चों का भविष्य सुरक्षित किया जा सके।

जिला प्रशासन को इस घोटाले की पूरी जांच करनी चाहिए और जो लोग इसमें शामिल हैं, उन्हें तुरंत कड़ी सजा दिलवानी चाहिए। यह केवल शिक्षा विभाग के लिए एक बड़ा कलंक है, बल्कि यह बच्चों के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button