क्या संविधान अपने परम लक्ष्य तक पहुंच पाया है ?…


- मनीष कुमार
भोपाल: आज मध्यरात्रि को जब पूरी दुनिया गहरी नींद में सो रही होगी, तब समूचा भारत अपना 76वां गणतंत्र दिवस मनाएगा। इस गणतंत्र को स्थापित करने में हमारी कई पीढ़ियों ने अपने लहू तक कि कुर्बानी दी है। हमारे महापुरुषों ने अपने लहू की अंतिम बूंद तक कुर्बान की है, तब जाकर हमें दुनिया का सबसे बड़ा और जीवंत लोकतंत्र मिला है। ये लोकतंत्र हमने कमाया हुआ है। ये हमें खैरात में नहीं मिला है। हमें इस राष्ट्रीय पर्व पर संकल्प लेना है। हमें अपने संविधान की संवैधानिकता को बनाए रखने के लिए नियति को वचन देना है, और उस वचन को पूरा भी करना है। कल प्रातः जब हमारी आंख खुलेगी तो सारा देश खुशियों से झूम रहा होगा। ऐसा क्षण इतिहास का साक्षी होता है। इस पवित्र मौके पर हम समर्पण के साथ खुद को भारत और उसकी जनता की सेवा, और उससे भी बढ़कर सारी मानवता की सेवा करने के लिए प्रतिज्ञा लेनी है। ना जाने कितनी ही सदियां इसकी भव्य सफलताओं और असफलताओं से भरी हुई हैं। लेकिन भारत तभी सफल होगा, जब संविधान अपने चरम लक्ष्य तक पहुंचेगा। हम सबको अपने संविधान में स्थापित उच्च आदर्शों का पालन करना है। भविष्य में हमें चैन की वंशी नहीं बजानी है, बल्कि हमें निरंतर प्रयास करते रहना है, अपने देश को आगे बढ़ाने में, भारत की सेवा करने में। भारत की सेवा का अर्थ है लाखों-करोड़ों पीड़ित लोगों की सेवा करना। इसका मतलब है गरीबी और अज्ञानता को मिटाना, बिमारियों और अवसर की असमानता को मिटाना। इसका मतलब है पंक्ति के अंत में खड़े व्यक्ति को सुनहरा अवसर प्रदान करना। क्योंकि संविधान और लोकतंत्र का यही मूल्य है।