उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की अध्यक्षता में आज राजभवन में ‘प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान’ के अंतर्गत समीक्षा बैठक की

- रिपोर्ट: राजीव आनन्द
लखनऊ: बैठक की समीक्षा करते हुए राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि कितने रोगी स्वस्थ होकर टीबी मुक्त हो चुके हैं ये सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।
अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए कि केवल नामांकन या गोद लेने तक ही सीमित रहना पर्याप्त नहीं है।
बल्कि यह देखना अधिक आवश्यक है कि गोद लिए गए मरीजों की देखभाल किस स्तर पर की गई।
उन्हें समय पर पोषण पोटलियां दी गईं या नहीं, और उन्हें चिकित्सकीय सेवाएं निरंतर प्राप्त हुईं या नहीं।
प्रत्येक जिले में चिन्हित किए गए टीबी मरीजों की संख्या स्पष्ट रूप से दर्ज होनी चाहिए।
इसके साथ यह भी रिकॉर्ड रखा जाए कि प्रत्येक मरीज को कितनी बार पोषण पोटली प्रदान की गई है, उनकी चिकित्सकीय स्थिति में कितना सुधार आया है।
और अब तक कितने मरीज पूर्ण रूप से स्वस्थ हो चुके हैं उन्होंने इस बात पर विशेष बल दिया कि मरीजों का पुनर्पपरीक्षण कितनी बार कराया गया, इसकी पूरी जानकारी भी नियमित रूप से संकलित की जाए।
यूपी के सभी जिलाधिकारियों, मंडलायुक्तों एवं चिकित्सा अधिकारियों को निर्देशित किया कि वे इन सभी आंकड़ों को नियमित रूप से अपडेट करें और विश्लेषण कर उन्हें राज्य सरकार को प्रेषित करें ताकि अभियान की वास्तविक प्रगति का मूल्यांकन किया जा सके।
यह अभियान केवल एक औपचारिकता न बने, बल्कि इसका उद्देश्य प्रत्येक टीबी रोगी को संपूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्रदान करना और प्रदेश को टीबी मुक्त बनाना है।
देश से टीबी को पूर्ण रूप से समाप्त करना है, यह केवल एक स्वास्थ्य अभियान नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के उस दूरदर्शी विजन का हिस्सा है।
जिसमें भारत को टीबी मुक्त बनाने का संकल्प लिया गया है, उन्होंने सबसे पहले मध्य प्रदेश में इस कार्यक्रम को प्रारंभ किया।
जहां उन्होंने स्वयं आंगनबाड़ियों से इस अभियान की षुरूआत की, इस कार्यक्रम की एक मजबूत रूपरेखा तैयार की और इसके बाद विश्वविद्यालयों को भी इससे जोड़ा।
जिससे शिक्षण संस्थानों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित हुई, उत्तर प्रदेश में कोरोना महामारी के चलते दिक्कतें आयी, लेकिन महामारी के समाप्त होते ही उन्होंने अभियान को और अधिक सक्रियता से आगे बढ़ाया।
अपने जनपद प्रवासों के दौरान उन्होंने स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर अभियान के प्रारूप को जमीन पर उतारा, और शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में टीबी रोगियों को चिन्हित कर उन्हें पोषण पोटलियां उपलब्ध कराने की व्यवस्था कराई।
राजभवन से स्वयं इस अभियान की अगुवाई की गई। उत्तर प्रदेश के सभी राज्य विश्वविद्यालयों को अभियान से जोड़ा गया।
इससे न केवल विश्वविद्यालयों को सामाजिक जिम्मेदारी निभाने का अवसर मिला, बल्कि समाज को भी सीधा लाभ मिला।
राजभवन के अधिकारी एवं कर्मचारी भी इस मिशन से जुड़ते हुए टीबी रोगियों को गोद लेकर उनके उपचार में योगदान दे रहे हैं।
अभियान को प्रोत्साहन देने के लिए उन्होंने विश्वविद्यालयों और इस कार्य में लगे अधिकारियों, कर्मचारियों तथा संस्थाओं को सम्मानित भी किया है।
उल्लेख किया कि जी-20 बैठक के दौरान कई देशों के प्रतिनिधियों ने भारत के इस टीबी उन्मूलन अभियान में गहरी रुचि दिखाई और जानना चाहा कि किस प्रकार भारत समाज की भागीदारी से इस दिशा में प्रगति कर रहा है।
जब अधिकारी, कर्मचारी या निःक्षय मित्र स्वयं पोषण पोटली लेकर मरीज के घर जाते हैं, तो न केवल मरीज को मानसिक बल मिलता है, बल्कि कार्यकर्ताओं को भी आत्मसंतोष और प्रेरणा प्राप्त होती है।
विशेष रूप से कहा कि टीबी के मरीजों को केवल दवा की ही नहीं, बल्कि प्रेम, सहानुभूति और मानवीयता की भी उतनी ही आवश्यकता होती हैं।
उन्होंने अपने अस्पताल भ्रमण का एक मार्मिक अनुभव साझा करते हुए बताया कि कुछ महिलाएं, जो टीबी से मुक्त हो चुकी थीं, उन्हें उनके परिजन स्वीकार नहीं कर रहे थे।
उत्तर प्रदेश राजभवन के अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा वर्ष 2019 से अब तक कुल 278 टीबी मरीजों को तथा प्रदेश के विश्वविद्यालयों द्वारा अब तक कुल 5,573 टीबी मरीजों को गोद लेकर उनको टीबी से मुक्त करने का काम किया गया है।
यह सहभागिता न केवल प्रदेश में टीबी उन्मूलन अभियान को गति प्रदान कर रही है, बल्कि समाज में एक सकारात्मक संदेश भी प्रसारित कर रही है, कि शासन, प्रशासन, शिक्षा जगत एवं समाज सभी मिलकर इस जनकल्याणकारी मिशन में सहभागी बन सकते हैं।