अनपरा में M/S सुपर ट्रांसपोर्ट कंपनी का ओवरलोड हाइवा बना हादसे की वजह: बिना खलासी दौड़ रही हाइवा, जैसे मौत को मिला हो सरकारी परमिट, स्विफ्ट डिजायर को मारी टक्कर
#अंधेर नगरी चौपट राजा’—न नियमों की परवाह, न जान की क़ीमत!

- चन्दन दुबे स्वतंत्र पत्रकार
सोनभद्र/अनपरा: कहते है कि जाको राखे साइयाँ, मार सके न कोय” — यही कहावत गुरुवार दोपहर अनपरा की सड़कों पर सच होती दिखी, जब सुपर ट्रांसपोर्ट कंपनी (STC) की तेज रफ्तार और नियमों की धज्जियाँ उड़ाती हाइवा ने एक चलती मारुति स्विफ्ट डिजायर (MP66ZE7760) को जोरदार टक्कर मार दी।
घटना इतनी भयावह थी कि कार का दाहिना दरवाजा क्षतिग्रस्त हो गया, लेकिन संयोगवश चालक और यात्री सुरक्षित बच निकले। मगर सवाल यह है कि कब तक किस्मत पर निर्भर रहेगा आम आदमी?
अनपरा शक्तिनगर में नियमों की उड़ाई जा रही धज्जियां
सूत्रों से प्राप्त जानकारी अनुसार बताते चले की तो UP 63CT 1163 नंबर की हाइवा ओवरलोड थी और सबसे बड़ी बात—यह कि बिना किसी हेल्पर खलासी के चलाई जा रही थी। जहां यह सीधा-सीधा मोटर व्हीकल नियमों की ठेंगा दिखाने वाला मामला है। न तो सड़कों पर वाहन की चलने की सही व्यवस्था है, न चालक के पास सुरक्षा मानकों की जानकारी जय स्पष्ट कहां जा सकता है कि राम भरोसे चल रहा राम नाम सत्य का कारनामा ।
चोर की दाढ़ी में तिनका, पैसा देकर पटाने की कोशिश:
जब मामला थाने पहुँचा, तो सुपर ट्रांसपोर्ट कंपनी के मैनेजर ने मामला दबाने के लिए 5000 रुपये में समझौते की बात छेड़ दी। लेकिन पीड़ित पक्ष ने इसे ठुकराते हुए न्यायालय का रास्ता पकड़ने का ऐलान किया। यह अकेली घटना नहीं है। अनपरा और शक्तिनगर क्षेत्र में ऐसे ओवरलोड, बिना खलासी वाले वाहन खुलेआम दौड़ रहे हैं और प्रशासन या परिवहन विभाग मानो कुम्भकर्णी नींद में सोया हो। ‘ना गली का चौकीदार जागा, ना शहर का राजा’! यह सवाल यच्छ प्रश्न की तरह हो गया है।
‘जान की कीमत रेत से भी सस्ती’:
डीएम और एसपी साहब, ज़रा निगाह डालिए — ये तो बस एक छोटी सी नज़ीर है, हकीकत तो इससे कहीं बड़ी और भयावह है!
हर दिन किसी न किसी मोड़ पर कोई माँ अपनी गोद उजड़ते देखती है, कोई पिता अपने बेटे की लाश पहचानने थाने की चौखट पर खड़ा मिलता है। कोई महिला अपने सुहाग के लिए रोती है और कोई बच्चा अपनी पिता का राह ताकत है अनपरा-शक्तिनगर क्षेत्र में ओवरलोड, बेकाबू और बिना खलासी के दौड़ती गाड़ियाँ अब सिर्फ वाहन नहीं, चलती फिरती आफ़त बन चुकी हैं। एक कहावत है जिसका कोई पहरेदार नहीं, उसकी गली में ही सबसे ज़्यादा लूट होती है, — और अफ़सोस की बात ये है कि यहां कानून के दरवाज़े खुले हैं, पर कार्रवाई की कुंडी जंग खा चुकी है।
हर दिन यहां कोई न कोई हादसा होता है—कभी किसी बच्चे की चीख सूनसान सड़क को चीरती है, तो कभी किसी माँ की गोद सूनी हो जाती है। बावजूद इसके न तो सख्ती होती है, न ही कोई ठोस कार्रवाई।
अब देखना है कि क्या इस बार प्रशासन इस ‘रफ्तार के राक्षसों’ पर लगाम कसेंगे या फिर यह मामला भी फाइलों की गर्द में कहीं खो जाएगा क्यों कि जनता पूछ रही है—की‘क्या सड़कें सिर्फ हादसों की चौसर हैं, और वही क्या कानून एक लाचार तमाशबीन, वही लोग यह भी पूछ रहे है कि आय दिन तमाम घटनाओं के बाद भी क्या प्रशासन की आंख अब भी नहीं खुलेगी और ट्रांसपोर्ट माफिया पर कड़ी कार्रवाई नहीं होगी, तब तक अनपरा की सड़कों पर मौत यूं ही फर्राटा