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पूछा धर्म बता

  • रिपोर्ट: चन्दन दुबे

घूम रहे थे हम नवयुगल
बैसरन की घाटी में
नव जीवन के स्वप्न बो रहे थे
कश्मीर की माटी में
उसकी गोद में सर रख कर
चंद्र मुख को जो देखा था
उसने भी ना जाने कितने
प्रश्नों को मुझसे पूछा था
मैंने भी पगली से बोला
क्यों तुमको है इतनी जल्दी
अरे सब्र करले मेरी प्रियतम
छूटने दे हाथों की मेहँदी

प्यारे प्यारे बच्चे होंगे
घर आँगन सुहाना होगा
एक कमरा कुछ अलग सजाना
जिसमे गाना बजाना होगा
किचन तुम्हारे मन का होगा
भोजन स्वादिष्ट बनाना होगा
क्यों मुँह फुलाती हो इस पर
मानता हूँ ….
मुझको भी हाथ बटाना होगा
क्यों प्रिये ?एक कमरे को ख़ाली रखें
रूठो तो जाओ बैठो उसमे
मैं भी छिपकर आ जाऊँ जिसमे
मनभर फ़िर दुलराऊँ तुमको
ना मानो तो खूब चिढ़ाऊँ तुमको
पापा मम्मी भी बुजुर्ग हो चले
कुछ ऐसा करती रहना
जिससे उनके चेहरे रहें खिले

अरे प्रिये कुछ तुम भी बोलो
अपने मन के सपने खोलो
नहीं मुझे कुछ नहीं है कहना
बस तुमसे ही सुनते रहना
ऐसे ही बस मन की कहना
सदा हमारे सम्मुख रहना
बिन तेरे मैं जी ना सकूँगी
तेरे बंधन की डोर बनूँगी
मेरा तो सर्वस्व तुम्हारा
तुम पर है ये जीवन वारा

तू संवेदनशील है पगली
इन वादियों को देख जरा
कैसे खुश हैं हाथ पसारे
अपने आलिंगन में भरने को
वृक्ष झूम रहे कैसे सारे
हम दम्पति को देख मुदित हैं
खग कुल भी ये कितने सारे
ऊँचे ऊँचे पर्वत कहते
सदा उन्नतिशील बने रहना
घाटी की गहराई सिखाती
मन में भाव भरे रहना
बात अभी मीठी मीठी सी
ये सात जन्म तक चलनी है
ये भी सोच रहे हैं वय द्वय
किसकी दाल गलनी है

इतने में आ गया पिशाच
हाथों में लिए हथियार
पूछा प्रेमी से धर्म बता
क्यों भाई तुमको नहीं पता
मेरा समग्र परिवार धरा
सभी निरोगी सभी सुखी हो
ऐसा जिसमें भाव भरा
वही धर्म है मेरा प्यारा
जहाँ भक्त से प्रभु है हारा
मैं ऐसा ही हिन्दू हूँ
परमसत्ता का बिंदु हूँ
इतने में तड़तड़ की आवाज़ हुई
सीने को गोली चीर गई
प्रियतम हुआ लहूलुहान
मानवता का हुआ अवसान
क्षण में सपने टूट गए
सच के दर्पण फूट गए
छलनी उसकी जो देह हुई
नव वधू वहीं विदेह हुई
कैसा ख़ौफ़नाक था मंजर
धरती हुईं खून से बंजर !

  • ज्ञानेंद्र नाथ पांडे’सरल’
    जिला आबकारी अधिकारी
    मिर्जापुर

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