उत्तर प्रदेश की राज्यपाल एवं राज्य विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल की अध्यक्षता में बैठक हुई सम्पन्न

- रिपोर्ट: राजीव आनन्द
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राज्यपाल एवं राज्य विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल की अध्यक्षता में आज राजभवन में किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ की नैक (राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद) पुनर्मूल्यांकन (री-असेसमेंट) एसएसआर रिपोर्ट की समीक्षा बैठक सम्पन्न हुई।
बैठक में विश्वविद्यालय द्वारा शैक्षणिक गुणवत्ता, अनुसंधान संवर्धन, अधोसंरचना विकास तथा छात्र कल्याण से जुड़े क्षेत्रों में किए गए प्रयासों की प्रस्तुति दी गई।
बैठक की समीक्षा करते हुए राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि विश्वविद्यालय को गर्भावस्था और प्रसव से जुड़ी विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं पर गहन शोध कार्य करना चाहिए।
इस बात पर अनुसंधान होना चाहिए कि गर्भावस्था के नौ महीनों के दौरान भ्रूण का उत्तम विकास कैसे सुनिश्चित किया जाए।
गर्भवती माता को किस प्रकार का पोषणयुक्त आहार लेना चाहिए तथा प्रसव के बाद नवजात शिशु को किस प्रकार का आहार दिया जाना चाहिए।
गर्भ संस्कार की महत्ता पर बल देते हुए निर्देश दिया कि सभी विश्वविद्यालयों में इस विषय को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाए।
इस पर आधारित कार्यशालाएं आयोजित की जाएं और व्यापक चर्चा की जाए।
बच्चियों और भावी माता-पिता, दोनों को इस विषय पर प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
विशेष रूप से कहा कि पिता को भी यह प्रशिक्षण अवश्य मिलना चाहिए कि गर्भावस्था के दौरान उनकी भूमिका क्या होनी चाहिए।
गर्भवती माता के पोषण एवं स्वास्थ्य की देखभाल में उन्हें कैसे योगदान देना चाहिए।
उन्होंने विश्वविद्यालयों को निर्देशित किया कि इस विषय पर किताबें तैयार कराई जाएं, विद्यार्थियों को इस ज्ञान से अवगत कराया जाए और इस क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाए।
एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि ’बिना दर्द के प्रसव’ पेन फ्री डिलीवरी कैसे संभव हो, इस विषय पर भी गहन शोध किए जाने की आवश्यकता है।
मेनोपॉज (रजोनिवृत्ति) को विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।
महिलाओं में मेनोपॉज के दौरान हार्मोनल परिवर्तनों के कारण उत्पन्न होने वाली शारीरिक और मानसिक समस्याओं के निदान हेतु जागरूकता अभियान चलाया जाए और इस विषय पर भी शोध कार्य को प्रोत्साहित किया जाए।
यह उल्लेख करते हुए प्रेरित किया कि जब एक बेटी इस प्रकार के विषयों का ज्ञान अर्जित करती है।
तो वह न केवल स्वयं के लिए बल्कि अपने परिवार की अन्य महिलाओं के लिए भी सहायता और मार्गदर्शन का स्रोत बनती हैं।
उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिया कि गर्भ संस्कार, प्रसव पूर्व एवं प्रसवोत्तर देखभाल तथा मेनोपॉज से संबंधित विषयों को आयुर्वेद से जोड़कर षोध कार्य किया जाए।
क्योंकि आयुर्वेद में इन सभी विषयों से जुड़े बहुमूल्य समाधान उपलब्ध हैं।
इस प्राचीन चिकित्सा पद्धति का लाभ उठाकर नई पीढ़ी को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक और सशक्त बनाया जाना चाहिए।
प्रेरणा से किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय लखनऊ में चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में एक अभिनव पहल की शुरुआत की गई है।
जब कोई व्यक्ति अस्पताल को मृत देह दान करता है, तो उनका उपयोग शोध और उच्च स्तरीय प्रशिक्षण के लिए किया जाए।
इस दिशा में राज्यपाल जी की प्रेरणा से केजीएमयू के एनाटॉमी विभाग ने कैडेवरिक वर्कशॉप्स का आयोजन प्रारंभ किया।
जहां मेडिकल विद्यार्थियों और विशेषज्ञ सर्जनों को जीवन-रक्षक सर्जिकल प्रक्रियाओं का व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
एडवांस लर्निंग के माध्यम से छात्रों को इस तरह सिखाया जाए कि वे जटिल सर्जिकल तकनीकों में दक्ष बनें और चिकित्सा क्षेत्र में नए अनुसंधान को बढ़ावा मिले।
इस पहल की प्रशंसा करते हुए कहा कि कैडेवरिक वर्कशॉप्स के माध्यम से मेडिकल छात्रों को जोखिम-मुक्त वातावरण में सर्जरी का वास्तविक अभ्यास करने का अवसर मिलता है।
इससे न केवल विद्यार्थियों के कौशल में वृद्धि होती है, बल्कि शोध के क्षेत्र में भी नवाचार के नए रास्ते खुलते हैं।
उनके मार्गदर्शन से केजीएमयू ने एक ऐसा मंच विकसित किया है जो समाज के लिए बहुत उपयोगी है।
इस कार्य को और भी व्यापक स्तर पर बढ़ाया जाए ताकि चिकित्सा क्षेत्र को उत्कृष्टता की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सके।
बैठक में विशेष जोर देते हुए कहा कि सर्वोच्च ग्रेड प्राप्त करना प्रसन्नता का विषय है, किंतु विश्वविद्यालय का उद्देश्य केवल ग्रेड प्राप्त करने तक सीमित नहीं रहना चाहिए।
विश्वविद्यालयों को गुणवत्तापूर्ण एवं उद्देश्यपरक शिक्षा प्रदान करने को अपना प्राथमिक लक्ष्य बनाना चाहिए, ताकि छात्रों का समग्र विकास सुनिश्चित हो सके।
उन्होंने विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि ट्रांसजेंडर समुदाय के बीच जाकर संवाद करें और उनके लिए जागरूकता व्याख्यान आयोजित करें।
उन्होंने विद्यार्थियों को अपनी शिकायतें व सुझाव फीडबैक फॉर्म के माध्यम से व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करने पर बल दिया और कहा कि यदि कोई कमी या समस्या विद्यार्थियों के द्वारा बताई जाए तो उसका तत्काल समाधान किया जाए।
अध्यापकों को विद्यार्थियों के साथ नियमित संवाद स्थापित करना चाहिए, उनका फीडबैक लेना चाहिए और आवश्यक सुधार कार्यवाही करनी चाहिए।
उन्होंने विशेष रूप से उल्लेख किया कि विश्वविद्यालय में गुणवत्तापरक सुधार सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।
ताकि संस्थान शैक्षणिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर उदाहरण प्रस्तुत कर सके।
विश्वविद्यालय को स्लो लर्नर्स की पहचान कर उनके लिए विशेष व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि वे भी शैक्षणिक क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर सकें।
उन्होंने विद्यार्थियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए योग का प्रायोगिक प्रशिक्षण सुनिश्चित करने, तथा लाइब्रेरी के अधिकतम उपयोग हेतु विद्यार्थियों को प्रेरित करने पर बल दिया तथा निर्देश दिया कि दीक्षांत समारोह के समय ही विद्यार्थियों की समस्त डिग्रियाँ डिजिलॉकर में अपलोड कर दी जाएं।