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योगीराज में अधिवक्ता पीड़िता बेटी भी डीएम-एसपी की चौखट पर ठोकरें खाने को मजबूर!

मिर्जापुर में न्याय के नाम पर सरकार के दावों का तमाशा!

  • रिपोर्ट: चंदन दुबे

मिर्जापुर: जब सरकारें संविधान और नियमों की बात करें तो वहां जमीनी हकीकत, की तस्वीर झूठी निकले और उसके बाद भी कागजी करामात से यह दिखाया जाए की व्यवस्थाएं सही चल रही हैं तो वहां यह कविता तस्लीम करती है कि,—सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के वसूलों से खुशबू आ नहीं सकती कागज के फूलों से_जब सरकार कहती है – बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ! लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि बेटियों को अपने हक के लिए भीख मांगनी पड़ रही है, न्याय की चौखट पर माथा रगड़ना पड़ रहा है। इस दास्तान की गवाह मिर्जापुर की अधिवक्ता प्रीति चौहान इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। कानून की रक्षा की शपथ लेने वाली यह महिला आज अपनी ही सुरक्षा और अधिकारों के लिए दर-दर भटक रही है। पिता की संपत्ति पर कानूनी अधिकार होने के बावजूद, पुलिस-प्रशासन की निष्क्रियता और भाई की दबंगई ने उसे बेघर करने की पूरी साजिश रच दी है।

कानून की किताबों में हक़, मगर ज़मीनी हकीकत में धक्का!
प्रीति चौहान के पास सभी साक्ष्य, दस्तावेज और कानूनी अधिकार मौजूद हैं। बावजूद इसके,उसके भाई सूर्य प्रताप सिंह ने घर पर कब्जा जमा लिया और पुलिस की नाक के नीचे गुंडई कर रहा है। यह आरोप तब गलत होता जब साक्ष्य का प्रमाण न होते पीड़िता के पास साक्ष्य है प्रमाण हैं कि कैसे पुलिस की मौजूदगी में बेईमान भाई ने अपने गुनाहों को स्वीकारा है ।

“न्याय की देवी अंधी हो सकती है, लेकिन मिर्जापुर का प्रशासन तो कानों में तेल डालकर सो रहा है!”
27 दिसंबर 2024 को जब प्रीति अपने घर में थी, तभी उसके भाई और उसकी पत्नी ने जबरन छत पर चढ़कर तोड़फोड़ शुरू कर दी। विरोध करने पर गंदी गालियां दी गईं, जान से मारने की धमकियां दी गईं। मामला पुलिस तक पहुंचा, मगर कार्रवाई के नाम पर सिर्फ आश्वासन दिया गया। जिसका नतीजा यह की मनबढ़ सूर्यप्रताप, ने पुलिस की नाकामी का लाभ लेते हुए पुनः हंगामा किया और धमकी दे दी: जिसकी शिकायत ➤ 10 जनवरी 2025: को पुलिस अधीक्षक को शिकायत पत्र से की गई , फिर भी फाइल ठंडे बस्ते में रहा , जब पत्रकारों ने इस मुद्दे को उठाया तो पुलिस हलचल में आई।

“गुंडों के सामने कानून बौना, वीडियो में दिख रहा साफ”
18 जनवरी 2025 को मौके पर जब पुलिस निरीक्षण करने पहुंची, तो आरोपियों ने खुलेआम पुलिस के सामने ही अपने गुनाह को स्वीकार करते हुए, दुर्व्यवहार और, धमकियां दीं और यह तक कहा कि “जो करना है कर लो, पुलिस भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती!जहां पीड़िता का कहना है कि इस घटना का साक्ष्य भी मौजूद है➤ पुलिस की मौजूदगी पर अभी तक FIR दर्ज नहीं?! अब सवाल उठता है कि अगर पुलिस के सामने ही कानून की धज्जियां उड़ाई जा सकती हैं, तो आम आदमी की क्या बिसात?

कानून की किताबों, क्या जमीनी हकीकत में दंगा करवाना चाहती है!
सवाल यह है कि 2005 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के मुताबिक, बेटियों का पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर हक होता है।सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन यह कहती है, मगर स्थानीय प्रशासन इस पर आंख मूंदे बैठा है।अगर कानून की पालना सही से नहीं हो रही, तो फिर इस कानून का मतलब क्या है? या फिर यह कानून सिर्फ कोर्ट की बहसों तक सीमित है?, या जमीनी हकीकत में किताबों से हटकर जंग की मैदान तैयार करने का मुहिम।क्यों कि जब एक अधिवक्ता महिला को ही न्याय पाने के लिए इतनी जद्दोजहद करनी पड़े, तो आम महिलाओं की स्थिति की कल्पना करना मुश्किल नहीं।

In Yogiraj, even the advocate victim daughter is forced to knock at the doorstep of DM-SP!

अहम सवाल योगी की पारदर्शी शासन पर जमीनी हकीकत कुछ और क्यों
पीड़ित अधिवक्ता का कहना है कि सरकार पारदर्शी शासन की बात करती है, जहां हमारे पास साक्ष्य मौजूद है-डीएम-एसपी के पास शिकायत पहुंची, फिर भी कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं हुई?,पुलिस के सामने ही आरोपी ने गुनाह स्वीकार दीं, धमकाया – फिर भी एफआईआर दर्ज करने में इतना विलंब क्यों?,अगर प्रीति चौहान को कुछ होता है, तो क्या प्रशासन उसकी जिम्मेदारी लेगा? ,न्याय में देरी, अन्याय को बढ़ावा देने के समान है!”,”बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ… पर हक़ मांगने पर थप्पड़ खाओ?”,बड़ी-बड़ी योजनाएं और नारे सिर्फ कागजों पर ही अच्छे लगते हैं।अगर बेटियों को उनके अधिकार के लिए दर-दर भटकना पड़े, तो यह सरकार और प्रशासन दोनों के लिए शर्म की बात है।

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