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गृहमंत्री अमित शाह की पत्नी पहुंची विंध्यधाम,प्रशासन का बेहतरीन प्रबंधन,पर वीआईपी संस्कृति बनी आमजन का टेंशन!

लोकतंत्र में समानता का अधिकार सबको—पर वीवीआईपी व्यवस्था लोकतंत्र से चुने हुए तंत्र को बदलाव जरूरी है।

  • रिपोर्ट: चन्दन दुबे

मिर्जापुर: विंध्याचल धाम में मंगलवार18 फरवरी को वीवीआईपी मूवमेंट के चलते सुरक्षा व्यवस्था सख्त कर दी गई। देश के गृहमंत्री अमित शाह की पत्नी सोनल शाह जब परिवार समेत मां विंध्यवासिनी के दर्शन को पहुंचीं, तो प्रशासन ने सुरक्षा की चाक-चौबंद व्यवस्था की। जिलाधिकारी प्रियंका निरंजन, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सोमेन वर्मा सहित अन्य अधिकारी खुद मौके पर मौजूद रहे। पुलिस महानिरीक्षक आरपी सिंह भी मंदिर और आसपास के इलाकों का निरीक्षण करते दिखे। चप्पे-चप्पे पर सुरक्षाबलों की तैनाती रही, ताकि किसी भी अप्रिय घटना को रोका जा सके।

प्रशासन की मुस्तैदी, लेकिन जनता परेशान
सुरक्षा कारणों से पुरानी वीआईपी मार्ग को आम श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिया गया, जिससे दूर-दूर से आए भक्तों को भारी असुविधा हुई। महाकुंभ के प्रभाव और धार्मिक सीजन के चलते मंदिर परिसर में पहले ही भीड़ उमड़ रही थी, ऐसे में वीआईपी मूवमेंट ने आम श्रद्धालुओं के लिए हालात और कठिन बना दिए। प्रशासन ने अपनी जिम्मेदारी निभाई, लेकिन क्या इसका हल निकाला जा सकता था?

यह पहला मौका नहीं है जब वीवीआईपी मूवमेंट के चलते आमजन को इंतजार और असुविधा झेलनी पड़ी हो। जब भी किसी बड़े नेता, मंत्री या उनके परिजन किसी धार्मिक स्थल पर जाते हैं, सुरक्षा इतनी कड़ी कर दी जाती है कि जनता को परेशानी उठानी ही पड़ती है। सवाल यह उठता है कि क्या यह परंपरा कब तक चलेगी? आखिर कब आम नागरिकों को भी वह सहजता मिलेगी, जो वीवीआईपी को मिलती है?

संतुलन की जरूरत: सुरक्षा बनाम सुविधा
प्रशासन की मजबूरी भी समझी जा सकती है। देश के गृहमंत्री के परिवार की सुरक्षा में कोई चूक नहीं हो सकती, और न ही प्रशासन इसमें कोई ढिलाई बरत सकता है। लेकिन क्या सुरक्षा व्यवस्था ऐसी हो सकती है कि आम जनता भी परेशान न हो? यदि वीआईपी दर्शन के लिए वैकल्पिक मार्ग या अलग समय तय किए जाएं, तो क्या इस समस्या से बचा जा सकता है?

मंदिर प्रशासन और स्थानीय प्रशासन मिलकर अगर एक संतुलित व्यवस्था विकसित करें, तो वीआईपी दर्शन और आम श्रद्धालुओं की सुविधा दोनों को बनाए रखा जा सकता है। विदेशों में अक्सर देखा जाता है कि नेता या बड़े अधिकारी आम लोगों के साथ ही सार्वजनिक स्थलों पर जाते हैं, बिना किसी विशेष प्रोटोकॉल के। सवाल यही है कि क्या हमारे देश में भी कभी ऐसा होगा।

वीआईपी संस्कृति कब बदलेगी?
प्रशासन ने अपनी ओर से बेहतरीन प्रबंधन किया, लेकिन जनता को तकलीफ उठानी पड़ी, और यह समस्या हर बार दोहराई जाती है। यह एक बड़ा सामाजिक प्रश्न है कि देश के नागरिक कब तक वीआईपी संस्कृति के बोझ तले दबे रहेंगे? आम जनता को यह समझना होगा कि नेताओं को भी उन्हीं व्यवस्थाओं में रहना चाहिए, जिनका सामना देश की जनता करती है। प्रशासन अपनी जिम्मेदारी निभाता है, लेकिन बदलाव की जिम्मेदारी पूरे समाज की भी है।

वही सवाल यह भी है कि आखिर कब समाज में उच्च पदानिष्ठ जिम्मेदार व्यक्ति हम आप इस मानसिकता से बाहर निकलेंगे कि विशेष लोगों के लिए विशेष व्यवस्था होनी ही चाहिए कि सोच से। क्योंकि स्थिति परस्थिति के हिसाब से ही व्यवस्थाएं उचित लगते हैं।

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