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धूप में तपते सिपाही: विधानसभा हो या शहर की सड़कें, पुलिस के लिए नहीं कोई छांव, न पानी की व्यवस्था

जून की झुलसाती गर्मी में भी अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं यूपी पुलिस के जवान, मगर बुनियादी सुविधाओं का अभाव कर रहा है व्यवस्था पर सवाल खड़े

  • रिपोर्ट: अनुराग सिंह बिष्ट

लखनऊ: राजधानी लखनऊ की विधानसभा के बाहर जब हमारे रिपोर्टर की नज़र वहां तैनात पुलिसकर्मियों पर पड़ी, तो एक हकीकत सामने आई जो अक्सर नजरों से ओझल रह जाती है। तेज़ धूप, पसीने से तर-बतर वर्दी, और सैकड़ों वाहन गुजरते हुए—लेकिन सिपाही मजबूती से खड़ा है, क्योंकि यह उसकी ड्यूटी है।

लेकिन सवाल ये है—क्या इस ड्यूटी के बदले उसे छांव, पानी और बैठने जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिलनी चाहिए? विधानसभा के बाहर ही नहीं, शहर के चौराहों, वीआईपी इलाकों, और कई संवेदनशील स्थानों पर तैनात पुलिसकर्मी भी ऐसे ही हालात में अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं। कई जगहों पर छाया की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है। न ही कोई जलपान की सुविधा है। गर्मी के इन महीनों में लू और हीट स्ट्रोक जैसी स्थितियों में ये सिपाही अपने शरीर और जान की परवाह किए बिना डटे रहते हैं।

Policemen suffering in the heat: Be it the Vidhan Sabha or the city roads, there is no shade or water for the police

कई स्थानों पर पुलिस कर्मियों को धूप से बचने के लिए सिर्फ दीवार की आड़ या खुद के लाए हुए गमछे का सहारा लेना पड़ रहा है। पानी की बोतलें वे खुद साथ लाते हैं, जो गर्मी में जल्दी खत्म हो जाती हैं। बैठने के लिए कोई उचित व्यवस्था नहीं, जब बड़े अधिकारी एयर-कंडीशन्ड गाड़ियों और कार्यालयों में सुरक्षित हैं, तो क्या नीचे खड़े जवानों के लिए कोई योजना नहीं बननी चाहिए? क्या पुलिस बल का यही सम्मान है कि उसे बुनियादी जरूरतों के लिए भी खुद ही जूझना पड़े? यह जरूरी है कि सभी प्रमुख ड्यूटी पॉइंट्स पर — विशेष रूप से जहां जवानों को धूप में खड़ा रहना पड़ता है — वहां छावं के लिए शेड्स, बैठने की व्यवस्था, और ठंडे पेयजल की सुविधा तुरंत सुनिश्चित की जाए।

उच्च अधिकारियों को इस दिशा में संवेदनशील पहल करनी चाहिए। पुलिस सिर्फ कानून-व्यवस्था का रखवाला नहीं, बल्कि इस समाज की सुरक्षा की नींव है। अगर यही नींव ही बेहाल होगी, तो व्यवस्था कितनी स्थिर रह पाएगी?

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